tag:blogger.com,1999:blog-8919704774556604476.post1688387200456800450..comments2023-05-27T18:53:20.485+05:30Comments on मालव संदेश: गिद्धभोजAtul Sharmahttp://www.blogger.com/profile/16469390879853303711noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8919704774556604476.post-39554542697106157802010-09-29T08:04:12.852+05:302010-09-29T08:04:12.852+05:30.
गिद्ध तो निश्चित ही पर्यावरण का संतुलन बनाये र....<br /><br />गिद्ध तो निश्चित ही पर्यावरण का संतुलन बनाये रखने में हमारे मित्र हैं। लेकिन जिस प्रकार से लोग बफे-सिस्टम में टूट पड़ते हैं , वह निश्चय ही गिद्ध-भोज की याद दिलाती है। जाने कहाँ गए वो दिन जब प्रचलन में था पंक्तियों में बैठकर सुकून से भोज किया करते थे। मेज़बान भी आग्रह कर-कर के खिलाते थे । पेट के साथ आत्मा भी तृप्त हो जाती थी।<br /><br />इस सुन्दर लेख के लिए आभार एवं शुभकामनायें। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8919704774556604476.post-84927976604029676792010-08-12T18:49:03.157+05:302010-08-12T18:49:03.157+05:30इस लेख की सबसे सुन्दर पंक्तियां यह लगी
..लेकिन मै...इस लेख की सबसे सुन्दर पंक्तियां यह लगी<br /><a rel="nofollow">..लेकिन मैं देख रहा हूँ कि इस आम जनता में भी जो व्यक्ति गिद्धों को कोसता रहता है, वह भी जब मौका मिलता है तो गिद्ध बनकर अपने से कमज़ोर को शिकार बना लेता है। देश की पूरी आबादी ही गिद्ध हो गई है कुछ स्थायी और कुछ अस्थायी।</a><br />कमाल का लेख लिखा है आपने अतुलजी। बड़ा दुख: हुआ कि इतना सुन्दर लेख मेरे ब्लॉग जगत से दूर रहने के कारण एक महीने बाद पता चला। मैने इस लेख का लिंक अपने जीमेल स्टेट्स पर भी लगाया है ताकि मेरे मित्र भी इसे पढ़ सकें। <br />एक बात का और भी आश्चर्य हुआ कि इतने बढ़िया लेख पर एक भी टिप्पणी नहीं!!सागर नाहरhttps://www.blogger.com/profile/16373337058059710391noreply@blogger.com